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!! सुन्दरसाथ का सिंगर राग धन्यासरी !!
जोगमायानो देह धरीने, श्री श्यामाजी थयां तैयार ।
ततखिण तिहां तेणे ठामे, मारे साथे कीधो सिणगार ।। १ ।। |
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सोभा सागर साथ तणी, सखी केणी पेरे ए वरणवाय ।
हुं रे अबूझ कांई घणुं नव लहुं, एनुं निरमाण केम करी थाय ।। २ ।। |
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कोटान कोट जाणे सूरज उदया, ब्रह्मांड न माय झलकार ।
प्रघल पूर जाणे सायर उलट्यो, एक रस थई सरवे नार ।। ३ ।। |
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एक नखतणी जो जोत तमे जुओ, तेमां कै ने सूरज ढंपाय ।
केम करी सोभा वरणवुं रे सखियो, मारो सबद न पहोंचे त्यांय ।। ४ ।। |
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वली गुण जो जो तमे नखतणां, हुं तेहनो ते कहुं विचार ।
सूरज द्रष्टे ताप ज थाय, आणे अंग उपजे करार ।। ५ ।। |
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साथतणी रे साडियुं ज्यारे जोइए, तेमां रंग दीसे अपार ।
अनेक विधनां जवेर ज दीसे, करे ते अति झलकार ।। ६ ।। |
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तेवा सरूप ने तेवा भूषण, तेज तणां अंबार ।
ए अजवालुं ज्यारे जीव जुए, त्यारे सुं करे संसार ।। ૭ ।। |
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मांहों मांहें वालाजीनी वातो, बीजो चितमां नथी उचार ।
ततखिण वेण सांभलतां वल्लभ, खिण नव लागी वार ।। ८ ।। |
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मन उमंग वालाजीसुं रमवा, आयत अति घणी थाय ।
आनन्द मांहें अति उजाय, धरणी न लागे पाय ।। ९ ।। |
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भूषण स्वर सोहामणां, मुख वाणी ते बोले रसाल ।
ए स्वरने ज्यारे श्रवणा दीजे, त्यारे आडो न आवे पंपाल ।। १० ।। |
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साथ सकल मारा वाला पासे आव्यो, मन आणी उलास ।
विविध पेरे वालाजीसुं रमवा, चितमां नथी मायानो पास ।। ११ ।। |
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रस भर रंग वालाजीसुं रमवा, उछरंग अंग न माय ।
इन्द्रावती बाई कहे धामना साथने, हुं नमी नमी लागुं पाय ।। १२ ।।
प्रणाम जी........
योगी अर्जुन राज पुरी
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12 जून 2012
जोगमायानो देह धरीने
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