12 जून 2012

भूंडा जीव जागजे रे

भूंडा जीव जागजेरे
कांई धणी तणे चरण पसाए, तुं भरम उडाडजे रे ।। टेक ।। १ ।।
आपण   निद्रा  केम  करुं  रे,   निद्रानो   नथी  लाग ।
भरमनी  निद्रा  जे  करे,  कांई  तेहनुं  मोटुं  अभाग ।। २ ।।
  जोगवाई  छे  आपणी,  नहीं  आवे  बीजी  वार ।
हाथ ताली दीधे जाये छे,  भूंडा का न करे हजी सार ।। ३ ।।
धणी   रे   आपणमां  आवियां,  भूंडा  कां  नव  जागे  जीव 
पेरे   पेरे   तंुने   प्रीछव्यो,   तुं   हजी    करे    कां    ढील ।। ४ ।।
धणिए  धणवट  जे  करी,  तुं   तां  जोने   विचारी   तेह 
   पापणीने  परहरी,   तुं   कां    करे  सनेह ।। ५ ।।
आपणने  तेडवा  आवियां,    दुस्तर  माया  मांहे ।
ओलखीने  कां  ओसरे,  भूंडा  एम  थयो  तुं   कांए ।।  ६ ।।
धणिए आपणसुं  जे करी रे, तुं  तां  जोने  विचारी  मन ।
कोडी ते हाथथी परी करी,  तुने  दीधुं  छे हाथ रतन ।। ।।
जीवडा   तुं  घारण  केही  करे,  भूंडा   घुटयो  दिन    अनेक 
जोवंता  जोगवाई  गई,  भूंडा  हजिए  तुं  कां  नव चेत ।। ८ ।।
आपण उपर   अति  घणी रे,   दया   करे   छे आधार 
आपणे काजे  देह  धर्या, भूंडा  हजिए  तुं  कां न  विचार ।।    ।।
भरम  भूंडो  तमे  परहरो,  जेम  थाय  अजवालुं अपार 
वचन    वालाजी    तणे,   तुं    मूलगां    सुख   संभार  ।। १० ।।
  वालो  ते  आवियां,    सुख  तणां  दातार ।
आपण  मांहें  तेहज   बेठां,  जोई  अजवालुं संभार ।। ११ ।।
दुरमती   तुं   कां   थयो,   हुं   तो   पाडुं   बुंब    अपार 
आंहीं    आव्या       ओलख्या,   पछे  केही पेरे मोंह उपाड  ।। १२ ।।
आंख  उघाडी  जो  जुए,  जीव  लीजे  ते  लाभ  अनेक ।
आंहीं पण सुख घणां माणिए, अने  आगल थाय वसेक  ।। १३ ।।
  अजवालुं  जो  जोइए, जीव तारतम मोटो सार
वालाजीने   ओलखे,   तो   तुं  नव  मूके  निरधार ।। १४ ।।
वालो वदेसी    आवी   मल्या, कांई  आपणने    वार ।
दुख मांहें सुख माणिए, जो तुं भरमनी निद्रा  निवार ।। १५ ।।
आ जोगवाई छे  खिण  पाणीवल,  केटलुं  तुंने   कहेवाय ।
पण अचरज मुने एह थाय छे, जे  जाण्युं धन केम जाय ।। १६ ।।
आगल   आपण   सुं   कर्युं,  ज्यारे   अजवाले  थई  रात ।
आ तां वालेजीए वली क्रपा  करी,  त्यारे तरत  थयुं प्रभात  ।। १ ।।
एवडी    वात   देखी   करी,    ते   तां   जोयुं  तारी  द्रष्ट 
हजी  तुं  भरममां  भूलियो,   तुंने   केटलुं  कहुं  पापिष्ट  ।। १८ ।।
अजवाले  वालो  ओलख्या,  त्यारे   पाछल  रह्युं सुं ।
जाणी बूझीने मूढ थयो, भूंडा   एम  थयो  कां  तुं ।। १९ ।।
पेरे पेरे में तुंने  कह्युं  रे,  सुण   रे   धणीनां   वचन ।
अधखिण वालो    वीसरे,  जो तुं जुए  विचारी मन ।। २० ।।
अनेक   वचन    तुंने    कह्या,  मान   एकनो  करे  विचार 
अरध लवे तारो अरथ सरे,    भूंडा एवडो   तुं कां कहेवराव  ।। २१ ।।
हवे  रे  तुंने  हुं  जे  कहुं, ते  तुं  सांभल  द्रढ  करी   मन ।
पचवीस  पख  छे  आपणां,  तेमां  झीलजे  रात  ने   दिन ।। २२ ।।
   मांहेंथी   रखे  नीसरे,   पल  मात्र  अलगो  एक ।
मननां   मनोरथ   पूरण   थासे,   उपजसे    सुख    अनेक  ।। २३ ।।
साख्यात   तणी   सेवा   कर   रे,   ओलखीने   अंग ।
श्रीधाम तणा धणी जाणजे, तुं तां रखे करे तेमां भंग ।। २४ ।।
मुखथी  सेवा  तुंने  सी  कहुं, जो तुं  अंतर  आडो टाल ।
अनेक  विध  सेवा     तणी,   तुंने   उपजसे   ततकाल ।। २५ ।।
पहेले फेरे आपण आवियां, ते तो वाले कह्युं छे विवेक ।
ते तां लाभ लईने जागियां, हवे आपण करुं रे विसेक ।। २६ ।।
पहेले   फेरे   थयुं    आपणने,   गोपद   वछ      संसार 
एणे   पगले   चालिए,   जो   तुं   पहेलो   फेरो  संभार  ।। २ ।।
एटला  माटे    अजवालुं,  वालेजीए  कीधुं आ वार ।
नरसैयां  वचन  प्रगट  कीधां,  कांई  व्रज  तणा  विचार  ।। २८ ।।
कहे इन्द्रावती नरसैयां वचन, जो जोइए करीने चित ।
धणिए  जे  धन  आपियुं,  कांई   करी  आपणने  हित ।। २९ ।।
प्रकरण प्रकरण-3 चौपाई 29
प्रणाम .जी .......
योगी  अर्जुन राज पुरी  








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