12 जून 2012

वालैयो वाणी एम ओचरेजी


!! उथला प्रकरण !!
वालैयो   वाणी   एम  ओचरेजी,  कहे  सांभलजो सहु साथ 
पतिव्रता  अस्त्री  जे   होय,  ते  तो  नव   मूके  घर  रात ।
रे  सखियो    सांभलो   (टेक) ।। १ ।।

तमे साथ सकल   मली  सांभलो, हुं वचन  कहुं   निरधारजी ।
तमे वेण मारो श्रवणे  सुण्यो, घर  मूक्यां ऊभा वारजी ।। २ ।।
कुसल   छे  कांई  व्रजमांजी,  केम  आवियों  आणी  वेरजी 
उतावलियों  उजाणियोंजी,  कांई  मूक्यां  कारज घेरजी ।। ३ ।।
किहे रे परियाणे  तमे निसरयांजी,   कांई   जोवा    वृन्दावन ।
जोयुं  वन   रलियामणुं,   कांई   तमे  थया   प्रसन्न ।। ४ ।।
हवे  पुरे   रे  पधारो  आपणेजी,  कांई  रजनी  ते  रूप अंधार 
निसाचारी  जीव   बोलसेजी,   त्यारे   थासे  भयंकार ।। ५ ।।
निसाए  नारी जे  निसरेजी,  काई  कुलवंती   ते    कहेवाय 
नात  परनात  जे  सांभलेजी,  कांई  चेहरो  तेमां  थाय ।। ६ ।।
सखियो तमे तो कांई न विमासियुंजी, एवडी  करे  कोई  वात 
अणजाणे उठी  आवियुंजी,  कांई  सकल  मलीने साथ ।।   ।।
ससरो सासु  मात तातनीजी,  कांई  तमे लोपी छे लाज ।
तमे सरम    आणी  केहनी, तमे ए सुं  कीधुं आज ।। ८ ।।
तमे पत तो तमारा ऊभा मूकियाजी, कांई  रोतां  मूक्यां   बाल 
ए वचन सुणीने विनता टलवली, कांई भोम पडियों ततकाल  ।।  ।।
तेमां केटलीक सखियो ऊभी रहियो,  कांई द्रढ  करीने मन 
बाई वांक हसे जो आपणोजी,  तो  वालोजी  कहे छे वचन  ।। १० ।।
वचन वाले सामा तामसियो,  राजसियो फडकला खाय ।
स्वांतसिए  बोलाय  नहीं,  ते  तां  पडियो  भोम  मुरछाय ।। ११ ।।
एणे समे मही सखी ऊभी रही, कहे  सांभलो धणीनां वचन 
सखियो कुलाहल तमे कां करोजी, कांई  ऊभा रहो द्रढ करी मन ।। १२ ।।
सखियो भूलां छुं घणवें आपणजी, अने वली कीजे सामा रुदन 
कलहो     करो   भोमे   पडोजी,   कां   विलखाओ  वदन  ।। १३ ।।
पिउजी पधार्या प्रभातमां, आपण  आव्यां   छुं  अत्यारे 
ते पण तेडीने  वाले काढियां, नहीं  तो  निसरतां नहीं क्यारे  ।। १४ ।।
पाछल आपण  केम  रहुं,  जो  होय  कांई  वालपण ।
केम न खीजे  वालैयो,  ज्यारे  सेवा  भूल्यां  आपण ।। १५ ।।
वालाजी  कहेवुं  होय  ते  कहेजो,  कांई  अमने  निसंक 
अमे तम आगल ऊभा छुं,  कांई  रखे आणो  ओसंक ।। १६ ।।
सखियो तम माटे हुं एम कहुं, कांई  तमारा जतन
रखे कोय तमने वांकुं कहे, त्यारे दुख धरसो तमे मन ।। १ ।।
सखियो तमे जेम घर ऊभां मूकियां,  तेम माणस न मूके कोय 
एम व्याकुल थई कोई न निसरे,  जो  ग्यान रुदेमां  होय ।। १८ ।।
सखियो तमे पाछा वलो, अधखिण म लावो वार ।
मनडे तमारे   दया   नहीं,   घेर   टलवले  छे बाल ।। १९ ।।
ए धरम नहीं  नारी  तणोजी,  हुं  कहुं  छुं  वारंवार ।
हवे घरडे तमारे सिधाविएजी,  घेर  वाटडी जुए भरतार  ।। २० ।।
वालैया हजी तमारे कहेवुं छे, के तमे  कहीने  रह्या एह 
ते  सरवे  अमे  सांभल्युंजी,  तमे  कह्युं  जुगते  जेह ।। २१ ।।
सखियो हजी मारे कहेवुं छे, तमे श्रवणा देजो चित ।
मरजादा केम मूकिए,  आपण  चालिए  केम  अनीत ।। २२ ।।
हवे वली कहुं ते सांभलो,   कांई  मोटुं  एक  द्रष्टांत ।
वेद पुराणे जे कह्युं,   कांई   तेहनुं  ते  कहुं व्रतांत ।। २३ ।।
भवरोगी होय  जनमनो,  जो   एहवो  होय   भरतार 
तोहे तेने नव   मूकवो,   जो   होय  कुलवंती  नार  ।। २४ ।।
जो  पत  होय  आंधलो,  अने  वली  जड  होय  अपार 
तोहे  तेने नव  मूकवो,  जो   होय   कुलवंती  नार  ।। २५ ।।
जो  पत  होय  कोढियो, अने  कलहो  करे अपार ।
तोहे   तेने   नव   मूकवो,   जो   होय    कुलवंती   नार  ।। २६ ।।
जो पत होय अभागियो, अने  जनम  दलिद्री अपार 
तोहे  तेने  नव   मूकवो,  जो  होय  कुलवंती  नार ।। २ ।।
जो पत होय पांगलो, बीजा अवगुण  होय अपार ।
तोहे  तेने  नव  मूकवो,  जो   होय  कुलवंती  नार ।। २८ ।।
खोड   होय   भरतारमां,  अने   मूरख   होय   अजाण 
तोहे  तेने  नव  मूकवो,  एम  कहे  छे  वेद  पुराण ।। २९ ।।
ते   माटे   हुं   एम   कहुं,  जे  नव  मूकवो  पत ।
ततखिण तमे पाछां वलो,  जो  रुदे  होय  कांई मत ।। ३० ।।
हवे साथ कहे अमे सांभल्यां, कांई तमारा वचन ।
हवे अमे  कहुं  ते  सांभलो,  कांई  द्रढ  करीने मन ।। ३१ ।।
पत तो वालैयो अमतणो, अमे ओलखियो निरधार ।
वेण सांभलतां तमतणी, अमने खिण नव लागी वार ।। ३२ ।।
अमे  पीहर  पख  नव  ओलख्युं,  नव  जाण्युं  सासर  वेड 
एक जाणुं  मारो  वालैयो,  नव  मूकुं  तेहनी   केड ।। ३३ ।।
पत तो केमे नव मूकवो, तमे अति घणुं कह्युं रे अपार ।
तमे साख पुरावी  वेदनी,  त्यारे  केम  मूकुं  आधार ।। ३४ ।।
तमे कह्युं पत नव मूकवो, जो अवगुण  होय  रे अपार 
तमे  रे  तमारे  मोंहे  कह्युं,  तमे  न्यारे  कीधो  निरधार ।। ३५ ।।
अवगुण पत नव मूकवो, तो गुण  धणी  मूकिए  केमजी ।
तममां अवगुण किहां छे, तमे कां  कहो  अमने एमजी ।। ३६ ।।
एवा हलवा बोल न बोलिए,   हुं  वारुं  छुं  तमने ।
  वचन  कहेवा  नव  घटे,  कांई   एम   कहेवुं  अमने  ।। ३ ।।
अमे तो आव्या आनंद भरे, कांई  तमसुं  रमवा रातजी ।
एवा बोल न बोलिए, अमने दुख  लागे निघातजी ।। ३८ ।।
अमे किहां रे पाछां वली जाइए, अमने नथी बीजो कोई ठाम जी 
कहोजी अवगुण   अमतणां,   तमें कां   कहो अमने एमजी  ।। ३९ ।।
अमे तम विना नव ओलख्युं, बीजा संसार केरा सूलजी ।
चरणे तमारे  वालैया,   कांई   अमारा छे मूलजी ।। ४० ।।
फल रोप्यो आंबो तमतणो, वाड कांटा  कुटंम पाखल ।
बीजो झांपो रखोपुं करे,  कांई  स्यो  रे  सनमंध  तेसुं फल  ।। ४१ ।।
फूल  फूल्यां  जेम  वेलडी,  ते  तां  विकसे  सदा  रे  सनेह 
वछूटे    ज्यारे    वेलथी,  त्यारे   ततखिण   सूके   तेह ।। ४२ ।।
जीव अमारा तम   कने,   कांई  चरणे   वलगां एम 
फूल  तणी  गत  जाणजो,  ते   अलगां  थाय  केम ।। ४३ ।।
तेम जीव अमारा बांधिया,  जेम  पडिया  मांहें जाल ।
खिण  एक  सामुं  नव  जोउं,  तो  पिंडडा  पडे  ततकाल  ।।  ४४  ।।
जीव  अमारा  चरणे  तमतणे,  ते   अलगां   थाय  केम ।
जल  मांहें  जीव  जे  रहे,  कांई  मीन  केरा  वली  जेम ।।  ४५  ।।
वाला तमे अमसुं एम कां करो, अमे  वचन सह्यां नव जाय 
खिण एक सामुं नव जोउं, तो तरत अद्रष्ट देह  थाय ।। ४६ ।।
निखर   अमारी  आतमा,  अने  निठुर  अमारां मन ।
कठण एवां  तमतणां,  अमे  तो  रे  सह्यां  वचन ।। ४ ।।
अम  मांहें   कांई  अमपणुं,  जो  हसे    वार ।
तो वचन एवां तमतणां, अमे नहीं सांभलुं निरधार ।। ४८ ।।
सखिए मनमां वचन विचारियां, कांई प्रेम वाध्यो अपार 
जोगमाया  अति  जोर  थई,  कांई  पाछी  पडियो ततकाल  ।। ४९ ।।
ततखिण वाले  उठाडियुं,   कांई  आवीने  लीधी अंग ।
आनंद  अति  वधारियो,   कांई   सोकनो   कीधो   भंग  ।। ५० ।।
वालोजी कहे  छे  वातडी, तमे   सांभलजो  सहु कोय 
में   जोयुं    तमारुं   पारखुं,   रखे    लेस  मायानो  होय  ।। ५१ ।।
ओसीकल वचन  वाले  कह्यां, कांई ते  में न कहेवाय 
सुकजीए   निरधारियुं   छे,   पण  ते  में  लख्युं  न जाय  ।। ५२ ।।
ए वचन श्रवणे सुणी, कांई   मनडां   थयां अति भंग ।
वाला एम तमे अमने कां कहो,  अमे  नहीं  रे  खमाय अंग ।। ५३ ।।
कलकलती कंपमान थैयो, कांई ततखिण  पडियो तेह 
आवीने   उछरंगे   लीधियो,   कांई   तरत  वाध्यो  सनेह  ।। ५४ ।।
आंखडिए आंसु ढालियां,  तमे  कां करो चितनो भंग 
आंसुडां लोउं तमतणां,  आपण  करसुं  अति  घणो  रंग  ।। ५५ ।।
सखी पूरुं मनोरथ तमतणां, कांई करसुं  ते रंग विलास 
करवा   रामत   अति   घणी,  में   जोयुं  मायानो   पास  ।। ५६ ।।
सखीओ वृन्दावन देखाडुं तमने, चालो रंग भर  रमिए रास 
विविध  पेरेनी  रामतो,  आपण  करसुं  मांहों  मांहें   हांस  ।। ५ ।।
तमे प्राणपें मुने  वालियो,  जेम  कहो  करुं  हुं  तेम ।
रखे कोय   मनमां   दुख   करो, कांई  तमे  मारा  जीवन ।। ५८ ।।
प्रणाम जी..........
योगी अर्जुन राज पुरी  




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